Wednesday, October 23, 2013

मैमोरी युक्तियॉ

मैमोरी युक्तियॉ


प्राथमिक संग्रहण

यह वह युक्तियाँ होती हैं जिसमें डेटा व प्रोग्राम्स तत्काल प्राप्त एवं संग्रह किए जाते हैं ।

1.रीड-राइट मेमोरी,रैम(RAM)
इस मेमोरी में प्रयोगकर्ता अपने प्रोग्राम को कुछ देर के लिए स्टोर कर सकते हैं । साधारण भाषा में इस मेमोरी को RAM कहते हैं । यही कम्प्यूटर की बेसिक मेमोरी भी कहलाती है । यह निम्नलिखित दो प्रकार की होती है

डायनेमिक रैम (DRAM)
डायनेमिक का अर्थ है गतिशील । इस RAM पर यदि 10 आंकड़े संचित कर दिए जाएं और फिर उनमें से बीच के दो आंकड़े मिटा दिए जाएं, तो उसके बाद वाले बचे सभी आंकड़े बीच के रिक्त स्थान में स्वतः चले जाते हैं और बीच के िरक्त स्थान का उपयोग हो जाता है ।

स्टैटिक रैम (SRAM)
स्टैटिक रैम में संचित किए गए आंकड़े स्थित रहते हैं । इस RAM में बीच के दो आंकड़े मिटा दिए जाएं तो इस खाली स्थान पर आगे वाले आंकड़े खिसक कर नहीं आएंगे । फलस्वरूप यह स्थान तब तक प्रयोग नहीं किया जा सकता जब तक कि पूरी मेमोरी को वाशकरके नए सिरे से काम शुरू न किया जाए
2.रीड ओनली मेमोरी (Read Only Memory)
ROM उसे कहते हैं, जिसमें लिखे हुए प्रोग्राम के आउटपुट को केवल पढ़ा जा सकता है, परन्तु उसमें अपना प्रोग्राम संचित नहीं किया जा सकता । ROM में अक्सर कम्प्यूटर निर्माताओं द्वारा प्रोग्राम संचित करके कम्प्यूटर में स्थाई कर दिए जाते हैं, जो समयानुसार कार्य करते रहते हैं और आवश्यकता पड़ने पर ऑपरेटर को निर्देश देते रहते हैं । बेसिक इनपुट आउटपुट सिस्टम ( BIOS) नाम का एक प्रोग्राम ROM का उदाहरण है, जो कम्प्यूटर के ऑन होने पर उसकी सभी इनपुट आउटपुट युक्तियों की जांच करने एवं नियंत्रित करने का काम करता है ।
 प्रोग्रामेबिल रॉम (PROM)
इस स्मृति में किसी प्रोग्राम को केवल एक बार संचित किया जा सकता है, परंतु न तो उसे मिटाया जा सकता है और न ही उसे संशोधित किया जा सकता है ।
इरेजेबिल प्रॉम (EPROM)
इस I.C. में संचित किया गया प्रोग्राम पराबैंगनी किरणों के माध्यम से मिटाया ही जा सकता है । फलस्वरुप यह I.C. दोबारा प्रयोग की जा सकती है ।

इलेक्ट्रिकली-इ-प्रॉम (EEPROM)
इलेक्ट्रिकली इरेजेबिल प्रॉम पर स्टोर किये गये प्रोग्राम को मिटाने अथवा संशोधित करने के लिए किसी अन्य उपकरण की आवश्यकता नहीं होती । कमाण्ड्स दिये जाने पर कम्प्यूटर में उपलब्ध इलैक्ट्रिक सिगल्स ही इस प्रोग्राम को संशोधित कर देते हैं ।

निर्गम उपकरण

निर्गम उपकरण 


। निर्गम उपकरण से तात्पर्य ऐसे उपकरणों से होता है जो कि किसी संगणना के परिणामों को निर्गम तक पहुंचाते हैं । ये परिणाम दृश्य प्रदर्शन इकाई द्वारा दिखलाये जा सकते हैं, प्रिन्टर द्वारा मुद्रित कराये जा सकते हैं, चुम्बकीय माध्यमों पर संग्रहित किये जा सकते हैं अथवा अन्य किसी विधि द्वारा यह निर्गम प्राप्त किये जा सकते हैं ।
एक कम्प्यूटर प्रणाली के विभिन्न अवयवों में कई उपकरण जो कि चुम्बकीय सिद्धान्तों पर कार्य करते हैं कम्प्यूटर में आंकड़ों के आगम एवं निर्गम दोनों ही उपयोगों हेतु प्रयोग किये जाते हैं निर्गम युक्तियाँ दो प्रकार की होती है
1. हार्ड कॉपी युक्तियाँ-यह वह युक्तियाँ हैं जिससे हम कागज पर आउटपुट प्राप्त कर सकते हैं । जैसे प्रिन्टर, प्लॉटर
2. सॉफ्ट कॉपी युक्तियाँ-यह वह युक्तियाँ हैं जिससे हम सिस्टम पर अस्थाई रूप में आउटपुट प्राप्त कर सकते हैं जैसे मॉनिटर, L.C.D

मुद्रण यन्त्र
मुद्रण यन्त्रों से तात्पर्य एक ऐसी प्रणाली से होता है जिसमें कि कम्प्यूटर द्वारा प्राप्त परिणामों को कागज के ऊपर छाप कर स्थायी रूप से उपयोगकर्ता को प्रस्तुत किया जाता है । इस पद्धति द्वारा प्राप्त परिणाम कागज पर मुद्रित होने के कारण स्थायी रूप से प्राप्त होते हैं जो कि मानव द्वारा पठनीय होते हैं मुद्रण यन्त्र कम्प्यूटर से परिणामों को विद्युत तरंगों के रूप में प्राप्त करता है एवं उन्हें कूट संकेत के अनुसार अक्षरों में परिवर्तित करके कागज पर छाप देते हैं । यह छापने की प्रक्रिया मुद्रण यन्त्र के प्रकार एवं उसमें उपयोग की जाने वाली तकनीक के अनुसार सम्पन्न होती है ।
1. समघात मुद्रण यन्त्र
ऐसे मुद्रण यन्त्र जिनमें कि अक्षर को मुद्रित कराने हेतु किसी ऐसी तकनीक का प्रयोग किया जाता है जिसमें कि अक्षर को कागज पर छापने के लिये अक्षर एवं कागज के मध्य स्याही युक्त फीते का इस्तेमाल किया जाता है एवं कागज पर उस अक्षर की आकृति उभारने हेतु किसी विधि से अक्षर पर पीछे की ओर से प्रहार किया जाता है, समघात मुद्रण यन्त्र कहलाते हैं ।
2. असमघात मुद्रण यन्त्र
इनमें उपरोक्त अन्य मुद्रण यन्त्रों की भांति किसी हथौड़े इत्यादि की तकनीक का उपयोग नहीं किया जाता है । इसमें डॉट मैट्रिक्स मुद्रण यन्त्र की भाँति छोटी-छोटी पिनें नहीं होतीं बल्कि पिनों के स्थान पर छोटे-छोटे विभिन्न नोजल लगे होते हैं जिनसे कि कम्प्यूटर से प्राप्त संकेतों के अनुसार स्याही की पतली विभिन्न धारायें छूटती हैं जो कि आपस में मिलकर वांछित अक्षर की आकृति बना देती हैं ।
ग्राफ प्लॉटर
ग्राफ प्लॉटर कम्प्यूटर निर्गम की एक ऐसी इकाई होती है जिसके द्वारा ग्राफों तथा डिजाइनों की स्थायी प्रतिलिपि प्राप्त कर सकते हैं । कम्प्यूटर निर्गम हेतु अन्य प्रयुक्त की जाने वाली विधियाँ जिनमें कि निर्गम स्थायी प्रतिलिपि के रूप में प्राप्त होता है । ग्राफ, डिजाइनों एवं अन्य आकृतियों को एकदम सही तरीके से नहीं छाप सकती । अर्थात यदि हमें निर्गम के रूप में स्पष्ट एवं उचित आकृतियों की आवश्यकता हो तो इस यन्त्र का उपयोग किया जाता है । इससे काफी उच्च कोटि की परिशुद्धता प्राप्त की जा सकती है । यह एक इन्च के हजारवें भाग के बराबर बिन्दु को भी छाप सकता है ।

Friday, October 11, 2013

मैं कहानीकार नहीं, जेबकतरा हूँ - सआदत हसन मंटो

मेरी जिंदगी में तीन बड़ी घटनाएँ घटी हैं।  पहली मेरे जन्म की। दूसरी मेरी शादी की और तीसरी मेरे कहानीकार बन जाने की। लेखक के तौर पर राजनीति में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। लीडरों और दवाफरोशों को मैं एक ही नजर से देखता हूँ। लीडर और दवाफरोशी दोनों पेशे हैं। राजनीति से मुझे उतनी ही दिलचस्पी है, जितनी गांधीजी को सिनेमा से थी। गांधीजी सिनेमा नहीं देखते थे, और मैं अखबार नहीं पढ़ता। दरअसल हम दोनों गलती करते हैं। गांधीजी को फिल्में जरूर देखनी चाहिए थीं, और मुझे अखबार जरूर पढ़ने चाहिए। मुझसे पूछा जाता है कि मैं कहानी कैसे लिखता हूँ। इसके जवाब में मैं कहूँगा कि अपने कमरे में सोफे पर बैठ जाता हूँ, कागज-कलम लेता हूँ और 'बिस्मिल्ला' कहकर कहानी शुरू कर देता हूँ। मेरी तीनों बेटियाँ शोर मचा रही होती हैं। मैं उन से बातें भी करता हूँ। उनके लड़ाई-झगड़े का फैसला भी करता हूँ। कोई मिलने वाला आ जाए तो उसकी खातिरदारी भी करता हूँ, पर कहानी भी लिखता रहता हूँ। सच पूछिए तो मैं वैसे ही कहानी लिखता हूँ, जैसे खाना खाता हूँ, नहाता हूँ, सिगरेट पिता हूँ और झक मरता हूँ। अगर पूछा जाए कि मैं कहानी क्यों लिखता हूँ, तो कहूँगा कि शराब की तरह कहानी लिखने की भी लत पड़ गई है। मैं कहानी न लिखूँ, तो मुझे ऐसा लगता है कि मैंने कपड़े नहीं पहने हैं या गुसल नहीं किया है या शराब नहीं पी है। दरअसल मैं कहानी नहीं लिखता हूँ, बल्कि कहानी मुझे लिखती है। मैं बहुत कम-पढ़ा लिखा आदमी हूँ। वैसे तो मैंने दो दर्जन किताबें लिखी हैं और जिस पर आए दिन मुकदमे चलते रहते हैं। जब कलम मेरे हाथ में न हो, तो मैं सिर्फ


सआदत हसन होता हूँ! कहानी मेरे दिमाग में नहीं, मेरी जेब में होती है, जिसकी मुझे कोई खबर नहीं होती। मैं अपने दिमाग पर जोर देता हूँ कि कोई कहानी निकाल आए। कहानी लिखने की बहुत कोशिश करता हूँ, पर कहानी दिमाग से बाहर नहीं निकलती। आखिर थक-हारकर बाँझ औरत की तरह लेट जाता हूँ। अनलिखी कहानी की कीमत पेशगी वसूल कर चुका हूँ, इसलिए बड़ी झुँझलाहट होती है। करवट बदलता हूँ। उठकर अपनी चिड़ियों को दाने डालता हूँ। बच्चियों को झूला-झुलाता हूँ। घर का कूड़ा-करकट साफ करता हूँ, घर में इधर-उधर बिखरे नन्हें-मुन्ने जूतें उठाकर एक जगह रखता हूँ, पर कमबख्त कहानी जो मेरी जेब में पड़ी होती है, मेरे दिमाग में नहीं आती और मैं तिलमिलाता रहता हूँ। जब बहुत ही ज्यादा कोफ्त होती है, तो गुसलखाने में चला जाता हूँ, पर वहाँ से भी कुछ मिलता नहीं। सुना है कि हर बड़ा आदमी गुसलखाने में सोचता है। मुझे अपने तजुर्बे से पता लगा है कि मैं बड़ा आदमी नहीं हूँ, पर हैरानी है कि फिर भी मैं हिंदुस्तान और पाकिस्तान का बहुत बड़ा कहानीकार हूँ। इस बारे में मैं यही कह सकता हूँ कि या तो मेरे आलोचकों को खुशफहमी है फिर मैं उनकी आँखों में धूल झोंक रहा हूँ। ऐसे मौकों पर, जब कहानी नहीं ही लिखी जाती, तो कमी यह होता है कि मेरी बीवी मुझसे कहती है, "आप सोचिए नहीं, कलम उठाइए और लिखना शुरू कर दीजिए!" मैं उसके कहने पर लिखना शुरू कर देता हूँ। उस समय दिमाग बिल्कुल खाली होता है, पर जेब भरी हुई होती है। तब अपने आप ही कोई कहानी उछलकर बाहर आ जाती है। उस नुक्ते से मैं खुद को कहानीकार नहीं, बल्कि जेबकतरा समझता हूँ जो अपनी जेब खुद काटता है और लोगों के हवाले कर देता है। मैंने रेडियो के लिए जो नाटक लिखे, वे रोटी के उस मसले की पैदावार हैं, जो हर लेखक के सामने उस समय तक रहता है, जब तक वह पूरी तरह मानसिक तौर पर अपाहिज न हो जाए। मैं भूखा था, इसलिए मैंने यह नाटक लिखे। दाद इस बात की चाहता हूँ कि मेरे दिमाग ने मेरे पेट में घुसकर ऐसे हास्य-नाटक लिखे हैं, जो दूसरों को हँसाते हैं, पर मेरे होठों पर हल्की-सी मुस्कराहट भी पैदा नहीं कर सके। रोटी और कला का रिश्ता कुछ अजीब-सा लगता है, पर क्या किया जाये! खुदावंदताला को यही मंजूर है। यह गलत है कि खुदा हर चीज से खुद को निर्लिप्त रखता है और उसको किसी चीज की भूख नहीं है। दरअसल उसे भक्ति चाहिए और भक्ति बड़ी नर्म और नाजुक रोटी है, बल्कि चुपड़ी हुई रोटी है, जिस से ईश्वर जितना कहानीकार और कवि नहीं है। उसे रोटी की खातिर लिखना पड़ता है। मैं जानता हूँ कि मेरी शख्सियत बहुत बड़ी है और उर्दू साहित्य में मेरा बहुत बड़ा नाम है। अगर यह खुशफहमी न हो तो जिंदगी और भी मुश्किल बन जाये। पर मेरे लिए यह एक तल्ख हकीकत है कि अपने मुल्क में, जिसे पाकिस्तान कहते हैं, मैं अपना सही स्थान ढूँढ नहीं पाया हूँ। यही वजह है कि मेरी रूह बेचैन रहती है। मैं कभी पागलखाने में और कभी अस्पताल में रहता हूँ। मुझसे पूछा जाता है कि मैं शराब से अपना पीछा क्यों नहीं छुड़ा लेता? मैं अपनी जिंदगी का तीन-चौथाई हिस्सा बदपरहेजियों की भेंट चढ़ा चुका हूँ। अब तो यह हालत है कि परहेज शब्द ही मेरे लिये डिक्शनरी से गायब हो गया है। मैं समझता हूँ कि जिंदगी अगर परहेज से गुजारी जाए, तो एक कैद है। अगर वह बद परहेजियों में गुजारी जाए, तो भी कैद है। किसी-न-किसी तरह हमें इस जुर्राब के धागे का एक सिरा पकड़कर उसे उधेड़ते जाना है और बस!